212 -2122
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन पर
या
फाइलुन फ़ाइलातुन?
वज़्न 212 2122 पर रचना
क़ाफ़िया अन
रदीफ़। में
***(**
प्रस्तुत है एक ग़ज़ल
#######
खुशबुएँ हैं पवन में।
गुल खिले हैं चमन में।
रात कितनी सुहानी।
चाँद तारे गगन में।
चैन पल को नहीं है।
आग जलती है तन में।
कोई रूठा है अपना।
चैन पल को न मन में।
पास आता नहीं वह।
रोज़ आता सपन में।
आंच कैसी विरह की।
आज़माओ तपन में।
2 आज का कार्य —-
वज़्न - 212 2122
विषय - स्वतंत्र
विधा - ग़ज़ल
ख़्वाब
ख़्वाब बुनते चलेंगे
चाहतों में मिलेंगे।।
ख़ुशनुमाँ वादियाँ हैं
गुल खिलाते चलेंगे ।।
आसमाँ दूर है तो
मुश्किलों में बढ़ेंगे ।।
बात हम भी हमारी
आप ही से कहेंगे।।
हर नज़र जानती है
हर नज़र में पलेंगे।।
राज़ छुप ना सकेगा
राज़ खुलते चलेंगे ।।
हम ‘उदार’ देखना अब
आँधियों से लड़ेंगे ।।
3वज़्न 212 2122 पर रचना
क़ाफ़िया अड़ी
रदीफ़। है
***(**
प्रस्तुत है एक ग़ज़ल
#######
इक तो मुश्किल बड़ी है
दूजे जिद पर अड़ी है
किस तरह मै मनाऊँ
इम्तहाँ की घड़ी है
वेदना कोइ समझे
यार किसको पड़ी है
कुछ तो तू समझ यारा
मुझ पे आफत पड़ी है
भूल कोई न हो अब
सबकी नज़रें गड़ी है
लोग बातें बनायें
साथ जब तू खड़ी है
कौन रिश्तों को समझे
मानसिकता सड़ी है
4*हाथ मिलेंगे*
शेर
212,2122,=12
जीत कर ही रहेंगे।
साथ हम तुम रहेंगे।
सपन जब ये बुने हैं,
साकार भी करेंगे।
रोकना आप चाहें,
यार डट कर चलेंगे।
बात आगे बढ़ेगी,
सोचकर फिर कहेंगे।
राज अब तक छिपाएं,
उजागर हो दिखेंगे।
जोर कितना लगाओ,
सत्यता हम लिखेंगे।
आपने कहां समझा,
हाथ मिलते मिलेंगे।
5बुधवार.
-------
कयामत की बातें क्यों,
वक्त खुश रहने का है।
रंजोग़म से ना गुजरें,
सही राह चलने का है।
धूप की गर्मी दिखी,
सर्दी में भली लगे
सूर्य की सुनहरी रश्मि,
नैनों में पहरी है लगे।
रोकती हैं राहें जब,
खिले आस पंखुड़ी।
उस लमहा आये याद,
वो विचित्र सी घड़ी।।
6 वज़्न पर सृजन
----(2122- 2122)
1हो बराबर मतलों मरहलों
का वज़्न ज़िंदगी में,
मिली थी नसीहत ।
मुहब्बत में ज़िंदगी 'औ ग़ज़ल के
वज़्न बराबर न हुए
ये इशक है मुसीबत ।
2कुछ न कुछ तो करोना
मेहनत से तुम डरो ना ।
काम करते धरम का
अर्थ से घर भरो ना ।
पेट खाली मत रखो
और ज्यादा भरो ना ।
ऋण किसी से नहीं लो
दूसरे का धन हरो ना ।
3क़ाफ़िया- आ की बंदिश
रदीफ़ - है
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तुम्हारे दिल मे क्या है
मुझे सबकुछ पता है।
न रहता एक सा तू
है मौसम या हवा है।
उसे तुम चाँद देदो
वो बच्चा रो रहा है।
वो नफरत भी नहीं जो
हमारे दरमया है।
***कादम्बिनी****
4२१२ २१२२ वज्न पर
गजल/ए / रहेंगे
हम मुहब्बत में यारो
रोज मरते रहेंगे
दर्द सहकर हमेशा
अश्क़ पीते रहेंगे
ये पैबन्द हमारे
जख्म सीते रहेंगे
आरजू दिल में रखकर
रोज जीते रहेंगे
नींद से जागकर भी
ख्वाब सोते रहेंगे
हम दुवा रोज उनके
लिए करते रहेंगे
जिंदगी भर वफ़ा के
उनसे वादे रहेंगे
दोस्ती को मुहब्बत
ना समझते रहेंगे
उम्रभर जान देकर
प्यार करते रहेंगे
लोग जुदा भले हो
हम निभाते रहेंगे
जीत उनको ही देकर
हार लेते रहेंगे
आज खाकर भी धोखा
मनु संभलते रहेंगे
......…..212 2122......
1
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5प्रदत् वज़्न---२१२,२१२२.
विधा--ग़ज़ल(ग़ैरमुर्रद्दफ़)।
क़ाफ़िया---'ज़िदगी है'।
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यदि निडर ज़िंदगी है।
तो सफ़ल ज़िंदगी है।
गर नहीं सावधानी,
तीरगी ज़िंदगी है।
लाग़री में ख़ुदा की
बंदगी ज़िंदगी है।
राज़ होता न रौशन,
अजनबी ज़िंदगी है।
हिज्र जाना में अब तो
शाइरी ज़िंदगी है।
आ चाँदनी भी मेरी तरह जाग रही है
पलकों पे सितारों को लिए रात खड़ी है
वज़्न--: 221--1221--1221--122
नाजो में पली आहों के साथ लड़ी है
पलकों पे सितारों को लिए रात खड़ी है
मुश्किल सी घडियो में रहते नहीं भय है
गर अपनों का साथ तो क्या बात ख़ुशी है.
ठुकराये ज़माना तो कभी ग़म का नहीं डर
गर साथ हैं माँ बाप तो क्या चीज़ कमी है
माँ बाप की दुआ पास बन ताबीज़ कलाई
बन ताकत शमशीर समाई जोश धनी है.
मन कब का खोया सा अपनों की गली में
झलक ले दीदार के लिए पास सगी है.
उल्फत के समंदर से ये उम्मीद जगी है
तूफ़ान के आंगन में भी रुक जाती खुशी है
2
ग़ज़ल
221--1221--1221--122
नाजो में पली आहों के साथ लड़ी है
पलकों पे सितारों को लिए रात खड़ी है
मुश्किल सी घडियो में रहते नहीं भय है
गर अपनों का साथ तो क्या बात ख़ुशी है.
आदत मुझे नदिया की ही मानिंद मिली है
कंकर में तभी चलने की आदत हो गई है.
माँ बाप की दुआ पास बन ताबीज़ कलाई
बन ताकत तकदीर समाई सोच धनी है.
हो फूल मगर सीख लो कांटों की ज़ुबां भी ।
काम आएगी दुनिया की नज़र कितनी बुरी है ।।
चिंगारियां छुपी हुई है मेरे शांत ह्रदय में,
राख के अंदर है छुपी,जैसे आग दबी है।
मन कब का खोया सा अपनों की गली में
झलक ले दीदार के लिए पास सगी है.
उल्फत के समंदर से ये उम्मीद जगी है
तूफ़ान के आंगन “मैत्री” रुक जाती खुशी है
स्वरचित –मोहन रेखा २४/१/२१ पंजाब
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