शनिवार, 22 जनवरी 2022

ग़ज़ल

गज़ल

उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे

वज़्न---122 122 122 122

खुशी जान के यूँ मिले से चलेंगे

उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे.

सुना गीत मन से सजाके लिखेंगे

न नफरत बढ़े हम कभी ना कटेंगे.

बने सोच घटिया सभी सह डरेंगे

कलम की लिखावट लिये से उठेंगे.

मिला के कदम जब लगा सब धरेंगे

सभी ओर बल पा बढा पग करेंगे|

सभी से बनाके अगर हम जुड़ेंगे

थमी सोच मुश्किल न बस यूँ रुकेंगे.

रेखा

बीच भॅवर मे डोल रहे सवाल बड़ा है

सबकी खाली झोली भरदे साल नया|

नफरत मिटे दिलों में जो भी हो सबके

उपवन प्रीती का महकाये साल नया|

सवा सो रूपये का तोफा ख्याल भला ?

कम खर्च में सवाल सिखाने साल नया

क्या है वादे और इरादे क्या जाने

करदे खुशियो की बरसाते साल नया

बच जाएं बेटियों शिकारी पंजों से ।

ऐसा कोई जिरह-बख्तर दे साल नया ।

हुनर कैद हैं कितने ही, दीवारों में।

उन्हें बगावत का इक स्वर दे साल नया ।

बिगडी मेरी बना दे समा मुश्किल भरा,

जीवन की ये रीत सिखाये साल नया|रेखा मोहन

 

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