मुझमे ज्योती और जीवन हैं ,
जलने वाला दीप सदा ,
जो धुल में मिल जाया करती ,
अस्सई सस्ती सौहल नही हु में........
अश्को से सजी घन से गिरी ,
सीपी के मुह में हु शुल नही हु,
क्षण -२ मेरा जीवन मोती हैं,
यही तो द्बिप की सची ज्योती हैं,,
मुझमे ज्योती और जीवन हैं....
रुकना मेरा काम नही,
झुकना मेरी शान नही,
बुझने और मिटने को जली नही ,
जलते जाना ही कर्म हैं,
यही तो सची मेहनत का श्रम हैं ।
अन्धकार को मिटा रौशनी को जगा अपना मार्ग पाना हैं.....
मुझमे ज्योती और जीवन हैं...........रेखा ०१ ४५ ....१४ अप्रैल २०१० म.इ अब्क्रेखा @जीमेल.com
बुधवार, 14 अप्रैल 2010
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andkaar ko mita apna maarg paana hein.... great conifidence...inspration.
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