बुधवार, 14 अप्रैल 2010

कशमश

कशमश में आज हम ,भीगे हैं हमारे नयन ,
क्या सुनाये मन की बात ,हर पल हैं मन उदास ।
क्या हम चाहतये हैं पता नही ,क्या मिला गिला नही,
खुद से बेखबर हैं मेरे वहम ,क्यों भीगे मेरे नयन.....
जो राह दिखी कल पड़े , हर मोड़ पर नजर वदे,
जो सोचा वो नही मिला ,देखते रहे हर मंजर नया
क्यों रहता हर घड़ी मेरा मन बेचेन करता कोई नया चयन।
इस दिशा में नही कोई हल हैं वना अपना रहमे-फन....
कशमश में आज हम , भीगे हैं हमारे नयन......
रेखा ...... १४अप्रिल १२५०अम @जीमेल.com

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