आज कुछ अशार वालिद शिब के लिए जो जनवरी में दुनिया से रुक्सत हो गये ,हमे अपनी यदोऊ का सबव दे गये।
आप वो रिश्ते का दिया हो ,जो दूर होकर भी पथ - पर्थष्ण करता रहेगा ,
आप चाँद भी नही रात भर ठंडक दे चलये जायेगे।
आप तो हर पल कुछ न कुछ हमये यादो से सिखायोगे ,
तुम तो वो याद हो जो हमारे लवो पर सुनाये जायोगे।
कभी हमारे मन और दिल से न जुडा हो पयोगे,
हमये सदा ठीक रास्ता दिखयोगे
हर कदम पर इम्तिहान लेती हैं जिंदगी .हर कदम पर न्य सदमा देती हैं जिंदगी ,
हम जिंदगी सें शिकबा भी केस्ये करे ,अपनी यादो के खली पीएलओ को केस्ये भरे ।
रेखा ...... १५अप्रिल २०१० समय १०:३०प्म मेल ईद.... @जीमेल.com
गुरुवार, 15 अप्रैल 2010
बुधवार, 14 अप्रैल 2010
ज्योती और जीवन
मुझमे ज्योती और जीवन हैं ,
जलने वाला दीप सदा ,
जो धुल में मिल जाया करती ,
अस्सई सस्ती सौहल नही हु में........
अश्को से सजी घन से गिरी ,
सीपी के मुह में हु शुल नही हु,
क्षण -२ मेरा जीवन मोती हैं,
यही तो द्बिप की सची ज्योती हैं,,
मुझमे ज्योती और जीवन हैं....
रुकना मेरा काम नही,
झुकना मेरी शान नही,
बुझने और मिटने को जली नही ,
जलते जाना ही कर्म हैं,
यही तो सची मेहनत का श्रम हैं ।
अन्धकार को मिटा रौशनी को जगा अपना मार्ग पाना हैं.....
मुझमे ज्योती और जीवन हैं...........रेखा ०१ ४५ ....१४ अप्रैल २०१० म.इ अब्क्रेखा @जीमेल.com
जलने वाला दीप सदा ,
जो धुल में मिल जाया करती ,
अस्सई सस्ती सौहल नही हु में........
अश्को से सजी घन से गिरी ,
सीपी के मुह में हु शुल नही हु,
क्षण -२ मेरा जीवन मोती हैं,
यही तो द्बिप की सची ज्योती हैं,,
मुझमे ज्योती और जीवन हैं....
रुकना मेरा काम नही,
झुकना मेरी शान नही,
बुझने और मिटने को जली नही ,
जलते जाना ही कर्म हैं,
यही तो सची मेहनत का श्रम हैं ।
अन्धकार को मिटा रौशनी को जगा अपना मार्ग पाना हैं.....
मुझमे ज्योती और जीवन हैं...........रेखा ०१ ४५ ....१४ अप्रैल २०१० म.इ अब्क्रेखा @जीमेल.com
कशमश
कशमश में आज हम ,भीगे हैं हमारे नयन ,
क्या सुनाये मन की बात ,हर पल हैं मन उदास ।
क्या हम चाहतये हैं पता नही ,क्या मिला गिला नही,
खुद से बेखबर हैं मेरे वहम ,क्यों भीगे मेरे नयन.....
जो राह दिखी कल पड़े , हर मोड़ पर नजर वदे,
जो सोचा वो नही मिला ,देखते रहे हर मंजर नया
क्यों रहता हर घड़ी मेरा मन बेचेन करता कोई नया चयन।
इस दिशा में नही कोई हल हैं वना अपना रहमे-फन....
कशमश में आज हम , भीगे हैं हमारे नयन......
रेखा ...... १४अप्रिल १२५०अम @जीमेल.com
क्या सुनाये मन की बात ,हर पल हैं मन उदास ।
क्या हम चाहतये हैं पता नही ,क्या मिला गिला नही,
खुद से बेखबर हैं मेरे वहम ,क्यों भीगे मेरे नयन.....
जो राह दिखी कल पड़े , हर मोड़ पर नजर वदे,
जो सोचा वो नही मिला ,देखते रहे हर मंजर नया
क्यों रहता हर घड़ी मेरा मन बेचेन करता कोई नया चयन।
इस दिशा में नही कोई हल हैं वना अपना रहमे-फन....
कशमश में आज हम , भीगे हैं हमारे नयन......
रेखा ...... १४अप्रिल १२५०अम @जीमेल.com
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