रविवार, 14 अप्रैल 2024

माता शैलपुत्री~कुष्मांडा माता

 

माता शैलपुत्री~

माँ दुर्गा का पहला स्वरूप

बहन बतियाते पीहर  जप।

पिता दक्ष की हो संतान।

नवरात्री के पहले ही दिन,

करे सब हीआपका ध्यान॥

देख क्रोध पिता बैठी ज़ुदा

सबकी आँखों में आई क्रोधा।

सुन पति के बिरुद्ध अपशब्द

यज्ञ में रह गई बन निशब्द।

अग्नि कुण्ड में वो  जा कूदी,

सहन न  हुआ कंत अपमान।

अगले जनम में ही पा लिया,

शिव के पास फिर माँ स्थान॥

सुता  हिमाचल  माँ शैलपुत्री,

उमा नाम से पा धरा उतरी।

बनी जो   देवों का वरदान॥

सजा है सा  दाये हाथ में,

दैत्य  संहारक को त्रिशूल।

बाए हाथ में भी ले लिया,

खिला नेह कमल का फूल॥

बैल बन  वाहन सा आपका,

जपती हो नित्य   शिव नाम।

नवरात्रारम्भ में आनंद मिले,

जय जय अम्बे तुम्हे प्रणाम॥

नवरात्रों की माँ,जय माँ शैलपुत्री,

दक्ष की हो संतान।शिव भार्या

नौ दिन माँ अलग रूप  भक्त

कन्या रूप में करते आह्वान।

स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब

" माँ  ब्रह्मचारिणी - महिमा "

जय माँ ब्रह्मचारिणी माता -जय हो।

नवरात्रि के दुसरे दिन माँ  ब्रह्मचारिणी  की पूजा

हाथ कमण्डलु दूसरे माला ले ब्रह्मा सुता ना दूजा।

प्रभु शिव को पाने को देवा रूप ले माँ पार्वती गौरी

ब्रह्म शब्द का अर्थ होता है तपस्या मन में थौरी।

बन तप करने वाली पैदल चलती बैठी एकांतवास

त्याग भूख प्यास फिर तो स्वाँस भी रुके बन वास।

उनकी घोर तपस्या से चिंतित सब लोक सोच खास

देवों की विनय से तप का आचरण करने वाली आस।

माता की पूजा का  करना मनुष्य को शुभ फलदायक

अमंगल ग्रह मिटे सभी होता पाप का नाश हलदायक।

गौरा ने भी अथक सी आराधना से पति  शिव को पाया

जीवन में एकाग्र होकर मन चाहा सा सब मिल  पाया।

याद करो माँ  ब्रह्मचारिणी मंगल दोष निवारिणी पल

जीवन भरपूर हो आनंद और खुशहाल सा बन लेके कल।

स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब .

माँ ब्रह्माचारनी माँ शक्ति दे

माँ  लगा चरणों शक्ति दे माँ.

पग-२ ठोकर चल न पायुं,

दंड पायुं कैसे  दर तेरे आयुं ,

हाथ पकड़ ले हाथ  बढा दे,

अपने मन्दिर तक पहुँचा दे.

सूखे नैना प्यासे दर्शन के,

२ जग में जिसका नाम है जीवन,

एक युद् सा संग्राम है जीवन,

तेरा नाम पुकारा दुःख का मारा

मै हार इस जीवन से भारा .

तेरे द्बारे पे माँ जो भी आया

उसने जो माँगा वो  भी पाया

मै सवाली तेरा माँ काली शक्ति माँ

पग पग टोकर खायू  पड़ा दर पे

माँ ब्रह्माचारनी माँ मुझे  शक्ति दे

माँ  दुर्गा लगा चरणों भक्ति दे माँ.

स्वरचित मोहन

………..

6

 

6 तीसरे नवरात्र सिह पर सवार हो माँ दुर्गा आप हें आई,

मस्तक पर सोहे अर्ध चन्द्रमा माँ चंद्र घंटा चंद्र घंटा कहलाई.

 

सोने जैसा रंग चमकीला रूप सजीला हौठ मुस्काये,

दस हाथो में शस्त्र उठाये दुष्टों कों सदा आप मिटाए.

 

युद्ध में अदुभत मुद्रा में सवारी शेर पर चड जाए ,

भयानक घंटा सुन दानव थर -थर काँप-२ जाए.

 

माँ चंद्र घंटाकी कृपा हो जिस पर मन चाही इचछा पाए,

भक्त करे जो दिल से आराधना सकल पधार्थ पाए.

 

दुष्टों का दमन करने माँ प्रचंड रूप वनाये,

अपने भक्तो के लिए सोम्य रूप प्यार वरसाए.

 

नाम मैया का रटते जायो प्यार से भोग लगायो,

तीसरे नवरात्रे की कर पूजा खुद  माँ  सेवक कहलायो.

7

प्रार्थना

हो रहि खूब जयकार-जयकार मातारानी मन्दिर विच,

सूचिया जौता वाली निहारु रूप बार- बार मन्दिर विच |

दरपर लगी रौनक बेशुमार मेरावली मै पहुँची मन्दिर विच,

किसे माँ नथ चढ़ाई, ध्वजा नारियल स्वीकार मन्दिर विच |

शैशव से रूप निहारु, पोशाक का रंग पुकारू देखू मन्दिर विच,

हाथ जोड़ माँ को पुकारू एक बार देख मेरी ओर मन्दिर विच |

बर्षो से माँ तेरी लाडली करती सच्चा प्यार दीदार मन्दिर विच ,

खुशियों से वरदे भक्ति खुशहाली का वर दे नमन मन्दिर विच |

तिलक लगायु मन्त्र गायु देखी भक्तो की जयकार मन्दिर विच,

प्रसाद पाया माँ का हार पाया झुमा मन दर्शन स्वीकार मन्दिर विच |

रेखा मोहन

8

अम्ब आओ अविलम्ब यहाँ तुम करके शेर सवारी

भक्तजनों पर संकट आया बहुत बढ़ गये आत्याचारी।

पहला दिन है शैल पुत्री का वर्षभ है जिनकी सवारी

त्रिशूल हस्त में जिनके सोहे है भोले की प्राण प्यारी।

दूसरे दिन आयी माँ ब्रम्ह्चारिणी हाथ कमण्डलु धारी

कमल पुष्प पर आरूढ़ है माता संतन की वो हितकारी।

शेर सवारी करके मैय्या चन्द्र घंटा रूप में आती

भक्तों को दे दर्शन मैय्या मनवांछित फल दे जाती।

चौथे दिन मैय्या मेरी है कुष्मांडा रूप में आती

मन की इच्छाएँ पूरी करती अष्टभुजी कहलाती।

पांचवें दिन माता मेरी चतुर्भुजी कहलाती

स्कन्द की धात्री बनकर सिंह सवार हो आती.

रेखा मोहन

a-अभिनंदन नववर्ष तुम्हारा ….

नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है,

खुशियों की बस इक चाहत है।

नया जोश, नया उल्लास,

खुशियाँ फैले, करे उजास।

नैतिकता के मूल्य गढ़ें,

अच्छी-अच्छी बातें पढें।

कोई भूखा पेट न सोए,

संपन्नता के बीज बोए।

ऐ नव वर्ष के प्रथम प्रभात,

दो सबको अच्छी सौगात।

Maa Oh Maa

B भजन

तू ही तू माँ तू ही तू

कण कण में माँ तू ही तू

तू ही तू माँ तू ही तू

कण कण में माँ तू ही तू

धरती के इस मंडल में

सूरज मै और चन्द्र में

गुरूद्वारे और मंदिर मे.

तू ही तू माँ तू ही तू

कण कण में माँ तू ही तू

C

तू माला की डोरी में

तू पूजा की सामग्री में

तेरे नाम की महिमा है

मैया जी नगरी नगरी में

ठंडी मस्त हवाओं में

चारो ही दिशाओ में

फूलों और फिज़ाओ में.

तू ही तू माँ तू ही तू

कण कण में माँ तू ही तू

D

गंगा की है धारा माँ

लहरों का धारा माँ

महलों का भंडारा माँ

गरीबों का सहारा माँ

नसीबों का सितारा माँ

सूरज में सवेरे में

रातों के अँधेरे में

भक्त मन के डेरे में.

तू ही तू माँ तू ही तू

कण कण में माँ तू ही तू

E

 तेरा गुणगान है होता माँ

गलियों में बाजारों में

तेरी ज्योत का जलवा है.

भवानी माँ सितारों में

साहिल नैय्या नदियाँ में

घी ज्योत और बतिया में

फानी मन की कुटीया में

तू ही तू माँ तू ही तू

कण कण में माँ तू ही तू

 

१० गीतिका **

मां कुष्मांडा

#विधा दोहे

 प्रकट किया ब्रह्मांड है, मंद हँसी अति रम्य।

कुष्मांडा  माता जयति,दर्शन अमित सुरम्य।।

 धनुष बाण है अति सुभग, और कमंडल साथ।

गदा पद्म अति सोहते,चक्र सुशोभित हाथ।।

लाल  वस्त्र धारण करे,मैया शेर सवार।

गल पुष्पन का हार है,पग पायल झंकार।।

पूजा वंदन कीजिए, मन रख परम पवित्र।

मैया करुणा कर रही, निरखो मां का चित्र।।

सर्व सिद्धि दायक आदि स्वरूपा मात।

हाथ जोड़ सुमिरन करें,सब मिल कर दिन रात।।

……..

11…15

11

शक्ति स्वरूपा हर बाला है, दुर्गा की अवतार।

कर में लिए त्रिशूल सामने, देवी ज्यों साकार।

सघन केश हैं शीश सुसज्जित, नेत्र तीसरा भाल।

कानों में कुण्डल मनभावन, गले स्वर्ण का हार।

सबको सहज करे आकर्षित, अधरों की मुस्कान।

बाल रूप मां का अति पावन, निश्छल है आधार।

हर बेटी का दिव्य रूप यह, मन को लेता मोह।

ऐसी कन्याओं से होते, सुखी सभी परिवार।

अखिल विश्व को नवरात्रि का, है यह शुभ संदेश।

सभी संजोकर रखें अपनी, संस्कृति के संस्कार।

१२

 नवरात्रि )))))))))

नव देवी पावन पुजन विधी नवरात्रि ले कर आए

मां दुर्गा के नौ रूपों की महिमा से जीवन तर जाए

शैलपुत्री स्वरूप मनोहारी उज्जवलता ले आए

ब्रह्मचारिणी स्वरूप तन मन चंदन सा महकाए

चंद्रघंटा स्वरूप प्रतीक विजय का मन को भाए

कूशष्मांडा स्वरूप सांत्वना दे हिम्मत और बढाए

स्कंदमाता स्वरूप जीवन को उत्साहित कर जाए

कालरात्रि भयमुक्त करे जीवन सफल बनाए

कट्यायनी का दिव्य स्वरूप भक्ती की शक्ति दर्शाएं

काली  स्वरूप दुर्जनों दुर्गुणों से लडना सिखाए

महागौरी की स्वेत धारा पवित्रता लेकर आए

सिद्धिदात्री कर पुर्ण मनोरथ तन मन को हर्षाए

मां के नौ स्वरूपों की भक्ति से विपदाएं मिट जाए

आओ हम सब मिलकर माता के दर्शन लाभ उठाएं.

१३

 जय मां चंद्रघंटा तेरे चरणों में नित नित प्रणाम

जग मग जग मग ज्योति जले पग पग तेरा स्थान

कितना सोहना कितना प्यारा देवी मां तेरा दरबार

तेरे दर्शन मात्र से धन्य हो जाता सकल संसार

सिंहवाहिनी मां स्वर्णिम रूप तेरा, देती हमें ज्ञान

दसों हाथ अस्त्र शस्त्रधारिणी हरती दुष्टों के प्राण

मस्तक सोहे अर्धचंद्र होटों पर मंद मंद मुस्कान

दूर करती भक्तों की पीर करती सबका कल्याण

तू जप तप तू ज्ञान सरूपा मुझ मुरख को दे ज्ञान

दे दो मैया भक्ति शक्ति करूं नित नित तेरा ध्यान

न रखूं किसी से वैर-भाव मन में हो सद्भावना

सबमें देखूं तेरा ही रूप ऐसी करूं नित प्रार्थना

तेरा हाथ जिसने पकड़ा वोह कैसे होगा बे-सहारा

दरिया में डूबकर भी भक्तों को मिलेगा किनारा

हे देवी मैया, तेरी महिमा तो है अपरम्पार

तलवार त्रिशूल गदा से करती तू दुष्टों का संहार

१४

 दुर्गा गीत

दर्शन देदो मात पुकारे

माँ हम आये द्वार तुम्हारे

भजते तुमको साँझ दुलारे

माँ अब खोलो मंदिर द्वारे

भरती उसकी झोली मैया

जो भी आये द्वार तिहारे

तुम फुरसत से माँ आजाओ

नैना तेरी बाट निहारें

माँ मेरे दिल की चाहत है

बेटी  कह इक बार पुकारे

माना है तेरे भक्त बहुत

पर माँ हम है तेरे सहारे

और किसी की आस करें क्यूँ

हम तो तेरी ओर निहारें

आदि शक्ति तुम विदित भवानी

तुमने सब दुर्जन संहारे

दर्शन दे दो मातु पुकारे।

माँ रेखा आए द्वार तिहारे।।

ममता मूरत सिद्दिदात्री तुम

सब के बिगड़े भाग संवारे।।

भव की भवर फंसी मम नैया

विनती आन लगाओ किनारे।।

स्वरचित मोहन

१५

 गीतिका

राह  सच्ची बता दे मुझे  माँ ,

मंज़िलों से मिला दे मुझे माँ ।

आजमाना नहीं है सितम  ये ,

दूर अपने न कर दे मुझे माँ ।

दूर  रहते  सभी जो करीबी ,

लोग अच्छा न कहते मुझे माँ ।

अर्ज़ मेरी सुनो तू कहाँ हो ,

हो जहाँ दर्श  दे दे मुझे माँ ।

आज ' साधक ' पड़ा मुश्किलों में ,

अब  करो दूर  ग़म से  मुझे माँ ।

……….

16---20

16

गीतिका

माँ चन्द्रघन्टा नमन तुमको  ,भक्त का स्वीकार हो।

दिन तीसरे व्रत को किये बिन ,दास का उद्धार  हो।१।

मौसम जनित पैदा हुए भव ,रोग कर दो नष्ट माँ ।

संसार कर दो माँ  सुखी जग,प्रेममय व्यवहार हो।२।

कल्याण कर दो सिंह रूढ़ा ,  चन्द्रघंटे अम्बिका ।

सम्पन्न शुभ परिवेश कर दो,युक्त सुख परिवार हो।३।

भुजचार सुन्दर चार आयुध ,कण्ठ माला है रुचिर।

संहार करने दुष्ट का माँ,    खड्ग  कर तैयार हो ।४।

कर एक में दल कमल जो ,शक्तियुत  ब्रह्मास्त्र सम।

नवरात्रि में कर अम्ब से मधु ,  कैटभों का क्षार हो।५।

माँ  भाल में शशि शुचि  व्यवस्थित , घंटिका आकृति सदृश ।

जयकार करते भक्त गण अब ,अम्ब फिर अवतार हो।६।

अज्ञान वश हम मूढ़ जन हैं,   कर्म के व्रत से पतित।

संशक्ति हमको अम्ब दो उर,  भक्ति का संचार   हो।७।

१७

 

 जय भवानी माॅ शिवानी, हम शरण में आ गए /

साधना के पल सुकोमल,मन कमल महका गए /

~~~

जब तुम्हारे नेह की जोती जली,मन प्राण में,

तब लगा पल छिन हृदय पे स्वाति जल बरसा गए /

~~~

जब हुआ मन प्राण आकुल,जिंदगी की राह में,

माॅ तुम्हारा प्रेम पाकर,भक्ति के क्षण भा गए /

~~~~

कंटकों में,दुर्गमों में, ,,,,जब फंसे मझधार में ,

मातु की पाई कृपा, हम मंजिलों को पा गए /

~~~~

अब तुम्हारी प्रेम की वीणा  बजी,सुरताल मय

भूल कर जीवन व्यथा ,शरणम् तुम्हारी आ गए //

 

18

मात कुष्मांड के दिव्य मुस्कान से-

हो रहा जग का पालन भी नवरात्रि में।

देती नवचेतना मात स्कंद तो-

है कमल भव्य आसन भी नवरात्रि में।

सिंह पर हैं विराजित माँ कात्यायनी-

दिव्य दिखता है आनन भी नवरात्रि में।

कालिका रूप में दान मिलता मनुज-

ज्ञान और सिद्धि कानन भी नवरात्रि में।

वर्ण है श्वेत गौरी महा दिव्यतम-

दे रही सुख का सावन भी नवरात्रि में।

सिद्धिदात्री अमर अब तो वरदान दें-

हो चतुर्दिक सुशासन भी नवरात्रि में।

माँ भवानी है "कृष्णा" की चाहत यही-

सुख से पूरित हो दामन भी नवरात्रि में।

19

देवी  दुर्गा  जगजननी का,रूप सुहाना है।

नवरातर में कर जगराता,गुनगन गाना है।

झूम-झूमकर नाच-नाचकर,उर की ज्योति जले,

ढोल झाँझ करताल बजाते,भोग चढ़ाना है।

पूजन करके दिव्य आरती,दिखलाकर माँ को,

शंखनाद करके जयकारा,वांछित पाना है।

बाल वृद्ध नर और नारियाँ,बड़े बुजुर्ग सभी,

मैया के स्वागत को तत्पर,ताल मिलाना है।

त्रिपुरसुन्दरी उमा भवानी,सबका भला करें,

सबके घर में मंगल बरसे,विनत मनाना है।

रिद्धि सिद्धियाँ चेरी जिसकी,ऐसी हैं मैया,

स्वास्थ्य बुद्धि बल धन वैभव का,खुला खजाना है।

भास्कर है कपूत पर माँ को,लगता है प्यारा,

मैया की महिमा गा गाकर,हुआ अयाना है।

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