नवरात्रि
*****
नौ दिन हैं
नवरात्रि के, आया पावन पर्व।
अपने नूतन वर्ष
पर,हम सबको है गर्व।।
नौ दिन हैं
नवरात्रि के, देवी पूजन खास।
नवसंवत्सर में
हमें, माता
से है आस।।
नौ दिन हैं
नवरात्रि के,आता है हर साल।
माता की आराधना,
सभी
करें हर हाल।।
चैत्र शुक्ल की
प्रतिपदा,आया पावन मास।
माता की
आराधना, इसमें
सबसे खास।।
आवाहन है शक्ति
का,नवसंवत के साथ।
उनके स्वागत
में सभी,जोड़ रहे हैं हाथ।।
सनातनी सब मानते,
नवसंवत
की बात।
भेदभाव को भूलते,छोड़
जात अरु पात।।
अवसर कितना खास
है,सभी झुकाते माथ।
शक्ति साथ जिनके
रहे,वे
हैं भोलेनाथ।।
…….
21---27
21 गीतिका -
आज आया नया वर्ष
मेरा।
नव विभा से भरा
है सबेरा।
चेतना का हुआ
प्रस्फुटन है,
दिव्य आनन्द का
है बसेरा।
छा गया पूर्ण
वैभव प्रकृति में,
नष्ट होगा अशुचि
का अँधेरा।
मंजरी आम्र की
खिलखिलाई,
दूत मधुमास ने
आज टेरा।
रूप रोचक धरा का
रचाकर,
हँस रहा विश्व
का वह चितेरा।
आ करें राष्ट्र
की वन्दना हम,
घोष जय हिन्द का
हो घनेरा।
२२
मेरी मैया
स्वरूप प्यारा।
मैया का दरबार
न्यारा।
दिखती सुंदर
पीली साड़ी
हाथ पकड़ी तलवार
भारी।
मैया की मधुर
मुस्कान है।
माँ के गले
मोतीहार है।
नाक नथ हाथ कंगन
सोहे।
माथे लाल
बिंदिया मोहे।
सभी चलो मैया के
द्वारे।
दरबार के दिखते
नजारे।
सभी भक्तों को
दर्शन दे दो।
खाली झोली सबकी
भर दो।
23
मां कामाख्या
देवी
तेरे नाम से माँ
सुवह शुरू हो
तेरे नाम से ही
माँ शाम हो|
मेरे जीवन का हर
पल चुन
देवा के अर्चना
के नाम हो |
जिस दिन से मन
मंदिर माँ
तूने भक्ति दीप
है जलाया
छाया है सब सुख
मन आया
पवन होगी है
चलती काया |
जब तक तन में
सांस रहेगा
होठों पर तेरा
रहेगा नाम |
मां तुझमें मन
खो जाए
तेरेमंदिर का
दर्शन करू
जन्म सफल हो जाए
बन
मन करता है
रातों में चल
हो चरणों में
विश्राम पाए |
तेरे नाम से माँ
सुवह शुरू हो
स्वरचित -रेखा
मोहन पंजाब
24
" माँ सिद्धिदात्री-
महिमा "
जय माँ जय माँ
सिद्धिदात्री,
शिव
अर्द्धांगिनी विश्वातीता ।
विविध अलंकृत
कञ्चन आभा ,
पट अम्बर
वस्त्राविता ।।
परमब्रह्म
परमात्मा अम्बे,
परमानन्दमयि
विश्वप्रीता ।
परमशक्ति माँ
परम भक्ति माँ
विश्ववर्चिता
कालातीता ।।
विश्वकर्ती माँ
विश्वभर्ती माँ,
विश्वहर्ती माँ
पद्मधरा ।
शंख चक्र सह गदा
पद्मयुत् ,
धर्मादिक शुभ
लाभ करा ।।
भक्ति मुक्ति
दात्री अम्बे माँ,
मंगलमयि शुभ
दायिनी ।
कष्ट निवारिणी
भवनिधि तारिणी,
महामोह तम
नाशिनी ।।
अष्ट
सिद्धिदात्री तू माता,
शिव शंकर को
तूने दिया ।
तेरी अनुकम्पा
से अम्बे ,
अर्ध नारीश्वर
नाम लिया ।।
चतुर्भुजा माँ
सिंह वाहिनी ,
कमल पुष्प पर हो
आसीन ।
लौकिक ,पारलौकिक
कामना,
निशिदिन रहने दे
न हीन ।।
चक्र गदा दक्षिण
कर शोभित,
दोनों नीचे ऊपर
में ।
ऊपर बायें शंख
लिए माँ ,
कमल पुष्प नीचे
कर में ।।
कृपा तुम्हारी
होती है जब ,
साधक होते
सिद्धि सहित ।
शास्त्र विधि से
पूजन कर वे ,
सभी कामना पाते
विहित ।।
कृपा तुम्हारी
पाकर माता ,
महिमा गायी
महिमामयी ।
दया करो माँ
पुत्र ' इन्द्र ' पर ,
जय दुर्गे माँ
कृपामयी ।।
२५
चौपाई छंद
आदि शक्ति मां
शंकर प्यारी।
जन्म तुम्हार
सदा सुख कारी।
कलश सजा मां
तोरण द्वारा।
पावन करो हृदय
आगारा।
शिवा उमा
कल्याणी अंबा।
कष्ट हरो माँ न
कर विलंबा।
सृजन जगत कर
पालन कर्ता।
मात भवानी तुम
संहर्ता।
शक्ति शंभु की
आदि काल से।
तप बल पाई
महाकाल से ।
तुम अविनासी घट-
घट वासी।
सब दुखहर्ता सब
सुख राशी।
सब के भाल करे
तुम वासा।
परम मनोहर माँ
तव हासा।
हो प्रसन्न हम
पर कल्याणी।
हे जगदंबा हे
रूद्राणी।
दुष्ट निकंदन
सदा दयालू।
भक्तों पर मां
सदा कृपालू।
व्याधि हटा मां
जय हितकारी।
बार-बार मैं शरण
तुम्हारी।
26
अब बिगड़ी को
बना, जग दुःख मिटाने
वाले
कर जोड़ शरण खड़े
.. श्रदा जगाने वाले ।।
दुःख सब
हरते सदा..मेरे भोले निराले
भक्त दर्शन पाकर
, सारे हुए मतवाले ।।
शीश गंगा सोहे ,
मस्तक
पर हैं राकेश ।
चंद्रमौलि की
कृपा, मिटे तभी सब ही क्लेश ।।
शिवा मुझे बचालो, हम शरण में तुम्हारी।
विषपान किया
तुने.. देवों लिए बलिहारी॥
कृपा का दान दे ,
निर्बल
को तुम बचालो।
सदीओं यहाँ रहे ,
जगत अब तो सम्भालो॥
प्रभु भोले के
दिन , पूजा बड़ी मन भावन ।
वर्ष में मास यहीं , पुनीत बना सा
सावन।।
वर्षा ले यह
सुंदर , धरती दिखे हरियाली ।
मेघ भी घिर आते ,
वायु
चले मतवाली ।।
स्वरचित –रेखा
मोहन २६ /७/२१ पंजाब
27
स्वरचित मौलिक
दुर्गा माँ
सौ-सौ जन्म लूंगी उपकार तुमारा पाने को,
बिगड़ी कश्ती खड़ी
भंवर सुधार तुमारा अपनाने को।
गृहस्थी जीवन
राह जो पकड़ी है, माँ हाथ तकड़ी है,
देख रहा भक्त
रास्ता माँ क्यों किस कारण बेखबरी है।
आशा के दीप को
मायूसी राह,रौशनी में आई बेसब्री है ...
बिगड़ी कश्ती खड़ी
भंवर सुधार तुमारा अपनाने को।
एकांत खड़ी रेखा
रास्ता तकत,बिरली बाबली लगती है,२
पूजा के थाल सजा
हर पल पथ अपरिचित तकती है।
कांपते हाथों से
हाफ्ते साँसों से मन्त्र आपके जपती है .
बिगड़ी कश्ती खड़ी
भंवर सुधार तुमारा अपनाने को।
माँ शैलपुत्री
आपकी छत्र-छाया में जीवन चलता है,३
आपकी आँखे देख
रही सुंदर प्यारी मोहक प्रबलता है।
आकर भाग्य जगा
दो माँ छबि पाने की लोलुपता है ..
बिगड़ी कश्ती खड़ी
भंवर सुधार तुमारा अपनाने को।
दुर्गा माँ
सौ-सौ जन्म लूंगी उपकार तुम्हारा पाने को,
स्वरचित - मोहन।
पंजाब…
……..
………
28—34
२८
!! गीतिका !!
हे अनाथ के नाथ,
देव
तुम अवढरदानी,
बैठे हो कैलाश,सॅंग
में आदि भवानी,।।
गले रुद्र की
माल,पहनते हो त्रिपुरारी,
वेद पुराण अनंत,कहे
सब अथक कहानी
आया सावन मास,पधारो
भोले बाबा,
लेकर अपने साथ,मातु
गौरा पटरानी।।
आतुर सारे भक्त,खड़े
दरबार तुम्हारे,
करें महा अभिषेक,चढ़ा
गंगा का पानी।।
धूप दीप नैवेद्य,सुमन
का थाल सजा है,
स्वीकारों अवधूत,
मेरे
बाबा बर्फानी ।।
तुम हो अजब फकीर,ओढ़ते
हो मृगछाला,
देते हो फल चार,
गजब
के तुम हो दानी ।।
२९
अर्द्ध भाग
पुरुष का राजे
अर्द्ध भाग
सुशोभित नारी
शीश चन्द्रमा कान
में कुंडल
अर्द्ध कंठ पर
फणि धारी
कंकण हार
रुद्राक्ष के सोहें
जटा बहे रे गंगा
धारी
त्रिशूल डमरू
हस्त बिराजे
ऊंकार महेश
शुभकारी
अर्द्ध कंठ
मणिहार सोहता
केश में गूधीें
बेणी प्यारी
शीश मुकुट कान
में कुंडल
कर कंकण अम्बुज
धारी
अंग प्रत्यंग
आभूषण राजत
मणिमाला चोली
प्यारी सारी
ऊँचे गिरि कैलाश
बिराजत
शिव शिवा रूप
छवि न्यारी
सृष्टा रुप
मनोहर भोले
ममत्व रूप छबि
नारी
जगत रूप में
शंभु सोहें
सृष्टि रूप
सुंदर नारी
जयो जयो अर्द्ध
नारीश्वर
परमानंद परम
सुखकारी।
३०
दिन चढ़ गया मेरी
मैया,अँधेरा ढल गया मेरी मैया,
हो रही मन्दिर
में जयजयकार त्रिकुटी जगदम्बे मैया |
आरती करू सुवह
-शाम पुकार मैया बारम्बार तेरा नाम |
पहले मैं शीश
झुकायु,हाथ जोड़ अपनी अर्ज मैं सुनायउ,
माँ भूली ना आज
मेरा साथ रही मन में ले अहसास गायऊ||
माँ बुधि देवी ,माँ
समृधि देवी,माँ ज्ञान-सम्मान देवी पायउ..
दिन चढ़ गया मेरी
मैया, अँधेरा ढल गया मेरी मैया,
हो रही मन्दिर
में जयजयकार त्रिकुटी जगदम्बे मैया | ....
सभी भक्तजन आवाज़
लगाये माँ अम्बे तेरे गुण गाये ,
वज रहे घण्टे
घड़ियाल शहनाई वादन सब साज़ सुन भायु |
माँ अपनों वाली
माँ सपनों वाली माँ मेरा वाली दर्शन पायउ ....
दिन चढ़ गया मेरी
मैया,अँधेरा ढल गया मेरी मैया,
हो रही मन्दिर
में जयजयकार त्रिकुटी जगदम्बे मैया |
तेरे मन्दिर में
संगता आईया ,मन मंगिया मुरादा पाईया ,
इस परिवार की भी
माँ भवानी रख तू लाज माँ कलिका मईया|
तेरे आसरे चल
रिहा काज माँ काली,माँ लक्ष्मी,माँ सरस्वती
मैया |
दिन चढ़ गया मेरी
मैया,अँधेरा ढल गया मेरी मैया,
हो रही मन्दिर
में जयजयकार त्रिकुटी जगदम्बे मैया |रेखा मोहन3/11/
३१
त्रिकूट पर्वत
पर विराजमान मैया वैष्नव देवी है
के दिन देखो
माता की ज्योति जागी है
मनोकामना पूरी
करेहै माता वैष्नव देवी है
माता के द्वार
पे देखो भक्तों की भीड़ बड़ी है
झोली हमरि खाली
है माँ कब से मन ये तरस रहा
दुखड़ा हम का से
कहें माँ अब तो आके कृपा बरसा
जीवन है अर्पण
तुझपे की वो है पहाड़ा वाली माँ
देंगी खुशियाँ
जीवन में मेरी ज्योता वाली माँ
अशांति और विपदा
ने घेरा, पल पल मन ये डरता है
एक तू ही आश है
माता मोको जग से तो डर लगता है
कृपा करेंगी
वैष्नव देवी यही आश जगी है
त्रिकूट पर्वत
पर देखो माता की ज्योति जगि है.
३२
सुई- सुई चुनरी
मेरी देवा रानी तुझे चढा यूगी, मैया तुझे चढा युगी ,
ह्रदय खोल मुख
से बोल ध्यान बटायुगी ,मैया ध्यान बटा युगी.
सुआ -सुआ चोला
मेरी देवा रानी तुझे चढा युगी ,
ह्रदय खोल मुख
से बोल सुन्दरता गान कर ध्यान बटायु गी .
.................................................................
सुई -सुई चूड़ी
मेरी देवा रानी तुझे चढा यु गी ,
ह्रदय खोल मुख
से बोल खानाख्हट से ध्यान बटा युगी.
..........................................................
ल डू हुओ का
जोड़ा मेरी देवा रानी तुझए चढा युगी,
ह्रदय खोल मुख
से बोल तेरा प्यार में पायुगी.
....................................................
सुई- सुई चुनरी
मेरी देवा रानी तुझे चढा युगी ,
ह्रदय खोल मुख
से बोल तेरे शगुन मनायुगी.
.................................................
सुई- सुई मेहदी
मेरी देवा रानी तुझे चढा युगी,
ह्रदय खोल मुख
सें बोल फूली ना स्मायुगी.
...............................................
पान-सुपारी मेरी
देवा रानी तुझे चढा युगी,
ह्रदय खोल मुख
से बोल मधुर गीत में गायुगी.
...................................................
ध्वजा -नारियल
मेरी देवा रानी तुझे चढा युगी ,
ह्रदय खोल मुख
से बोल शगुन में मनायुगी.
३३
माँ दुर्गे आपको
बल , बुधि, विद्या प्रदान करे !
आप सब का दिन
मंगलमय हो !!!
जय माता दी
माँ मुझे बरदान
देदो...............................,
सब्द देदो
कल्पना दो नव सृजन की चेतना दो !
ध्वनि मधुर भासा
अलंकृत छंद में भी जान देदो !!
माँ मुझे बरदान
देदो,.!
सत्य, अहिंसा,
साधना,
ब्रत,
रहू
सुकर्मो में सदा रत !
दीन दुखियो का
हरे जो दर्द वो मुस्कान देदो !!
माँ मुझे बरदान
देदो. !
मंच में जब गीत
गाऊ सबके मन को मै रिझाऊ !
तालियों की
गड़गड़ाहट हर जगह सम्मान दे दो !!
माँ! मुझे वरदान
देदो,...!
निज कृपा का एक
मन दो, पुत्र को असिर्वचन दो !
काब्य आशीष का
चमके जब, एक अलग पहचान देदो !!
माँ मुझे बरदान
देदो,...!
34
जरा सामने तो
आयो शेरा वालिये, नित पुजते है तेरी तशबीर को ,
चिंता-पुरनी तू
चिंता -निवारनी ,बदल हमारी भी माथे की लकीर को.
तू शक्ति माँ
आध-भवानी ,तेरी लग्न में यूँ रंगिया ,
तू चाहे ता पार
लगा दे इस दुनिया से क्या मागिया.
तू बख दे
बख्शनहार को ,चिन्तपुरनी तू चिंता निवारनी ..
बदल हमारी भी
बिगड़ी तकदीर को ....
ये जग चिंता का
रेला हैं ,तू जो चाहे तो माँ खुशी की बेला हैं ,
संकटो ने हर
मोड़ पर बुरी तरह घेरा हैं ,कोई ना सच्चा नाता मोरा हैं.
संकट मिटायो मेरा
वालिये... अव तो दर्शन दिखायो शेरा वालिये..
तू माता मै
बच्ची हूँ तेरी, ऐसा जगत में पाया नाता हैं ,
बेटी कुबेटी हो
सकती हैं, माता तो फिर भी ही माता हैं .
सदा अपना साथ
निभायो जौता वालिये अपना मानो मेरा वालिये.
स्वरचित मोहन
पंजाब .
………..35--42
35
गौरा माँ बेटी
के लिए साक लायो साथ भोल्ये,
हर कन्या की
हसरत पूरी कर जायों संग भोले .
भला घर सचा
-साथी का डर हो ,
हर्ष में खिला
वाटिका सा बसर हो.
माँ-बाप का गम
ख़ुशी में बोले ...१
गौर माँ बेटी के
लिए साक लायो साथ भोले,
........................................
.............
पकी- टकी हो जाए
,रोक भी होले,
मिलन का दिवस
निकट ,वस दिल डोले .
खुशियों का आगमन
दिखायो अव ना चुप होले....२
गौरा माँ बेटी
के लिए साक लायो साथ भोले,
.................................................
लक्ष्मी माँ
सुख- समर्धि खिलायो,
कामना के फूल के
गान भर जायों.
कुबेर जी भी संग
रंग हो ले ....३
गौरा माँ बेटी
के लिए साक लायो संग भोले,
सरस्वती माँ
बुधि का संचार करो,
द्रढ़-बंधन का
नीड़ बनाये बिन बोले .
श्गार से रूप
सज़ा सुंदर सर्जन होले....४
तीनोऊ माँ संग-२
कारज पूरा कर वर दे बोले....
गौरा माँ बेटी
के लिए साक लायो साथ भोले,
हर लडकी की हसरत
पूरा कर जायो संग भोले.
36
नवरात्रि के
शुभागमन पर,,,,,,,,,
माँ बंदना ये बन याचक जग
सुनाता गान
तेरी भक्ति से
मिलता हर पूजन सम्मान ।
माता गौरी जी
आपका, दिवस चतुर्थ जान
हो प्रसन्न वर
दीजिये, सब पूरे हों मन पान। .
किया कठिन तप
आपने, पाया शिव का साथ
भक्तों का माँ
आप भी, कभी न छोड़ें रेखा हाथ.।
दे उपहार चरण
पूंजते, वह कष्टों में नहीं आते
मातृरुप कन्या
खिलाते। जिससे सब दुःख ज़ाते।
हें मात भवानी,
महिमा
तुम्हरी न जाय बखानी
द्बार खड़े हाथ
जोड़ स्तुति करते बन कथा सुनानी।
कर उपवास पर्व
मनाते, कन्या में माँ की छवि पाते
घर घर कन्या
पूजन करते। दे प्रसाद नतमस्तक भाते ।
मातृरुप कन्या
को खिलाते। जिससे ये दुःख कट जाते
मन में अपने
सुख हर्ष भर। बन सफल अनुभूति पाते।
स्वरचित -रेखा
मोहन पंजाब
37
यह वृंदा और
उसके पुनर्जन्म की कहानी है,
संसार को मिला
वर, तुलसी बूटी सुहानी है।
यह कहानी भगवान
की भक्त पर समर्पण की है,
एक पतिव्रता की
उसके स्वामी पर अर्पण की है।
श्रापित हुए
भगवान, भक्त की असहिष्णुता से!
भगवान भक्त के
लिए बिलखे असहायता से।
वादा पूरा करने,
विष्णु
बंधे विवाह के बंधन में,
शालिग्राम में
अवतरित हरि का मुकुट कुंदन में।
उत्थान द्वादशी
को सजी मंडप, तुलसी शादी की,
बना 'गगन'
शामियाना
ब्याह के लिए शहज़ादी की।
………..
35-40
35
शीर्षक
-तुलसी-सालिगराम विवा
तुलसी का पूजन
करें,सालिगराम के साथ।
इनके आगे
सभी जन, नित्य नवाएॅं
माथ।
बिना तुलसी के आॅंगन ,सूना-सूना लगता।
तुलसी का
घर होना,शुभदायी फल
मिलता।
जालंधर के
अत्याचार से,देवता
विष्णु पास।
पारब्रह्म
तुम्हीं बचाओ, अब है तुम्हारी आस।
जालंधर बन छल
किया,विष्णु ने वृंदा के साथ।
श्राप से विष्णु
सालिगराम,सती वृंदा पति साथ।
प्रबोधिनी
एकादशी,वृन्दा तुलसी रूप लिया।
जन्म शिलाखंड से,विष्णु
ने तुलसी नाम दिया।
तुलसी जी का,विष्णु
भगवान से हुआ विवाह।
गगन,अग्नि,
देवता
हुए ,परिणय सूत्र गवाह।
देवी का पर्याय
है तुलसी,हिन्दुत्व की पहचान।
घर में पौधा
खुले में होता,पूजन का है विधान।
आॅक्सीजन यह रात
दिन, सबको देता भरपूर।
तुलसी चबाएं
काढ़ा पिएं, होते रोग
सब दूर।
तुलसी में गुण
बहुत हैं, कहते डॉक्टर वैद्य।
शाम को दीपक नित
रखें,अक्षत,चंदन,नैवेद्य।
मोक्ष प्राप्ति
मरने वाले ही, सीधे स्वर्ग जाते।
इसीलिए गुणकारी
तुलसी,घर-घर में लगाते।
38
विषय- गिरिवर
विधा- गीत
छोटे से कन्हैया
ने गिरि भारो सो उठाय लियो,
माता ने सब गोपन
को सहारे को बुलाय लियो|
1-अपनी-2
लाठी लेकर ब्रजवासी दौड़े आये,
देख-2 कर
गिरिधारी को ग्वाल बाल सब चकराये|
मन मुस्काय
कान्हा सबको भरोसो दियो,
छोटे से कन्हैया
ने......
2- मूसलाधार पड़े
पानी की ब्रजवासी सब घबराये,
कुपित इन्द्र ने
सात दिनों तक भारी मेघा बरसाये|
मन पछताय इन्द्र
बाल न बांका कर पायो,
छोटे से कन्हैया
ने.........
3- इन्द्र देव का
मान घटाया ब्रजवासी सब हरषाये,
दोनों हाथ मले
नृप ने जब समाचार ब्रज के पाये|
एरावत सजाय राजा
शीश नवाने आयो,
छोटे से कन्हैया
ने........
4- सात दिनों की
छप्पन बेला गोपिन ने सब भोग बनाये,
जय गिरिवर
गिरिधारी ने रुचि-2 के सब व्यंजन खाये|
गोबर्धन की
रक्षा करके शुभ सन्देशा दियो,
छोटे से कन्हैया
ने गिरि भारो सो उठाय लियो|
माता ने सब गोपन
को सहारे को बुलाय लियो|
39
* सिद्धिदात्री
माता *
नव दुर्गा
का नवें रूप है,
कहते हैं
सिद्धीदात्री माता।
चार भुजा
धारी है इसकी,
भक्तजनों से है
गहरी नाता।।
कमलासन में है विराजमान,
शंखचक्र लिए ऊपर
के हाथ।
नीचे हाथ गदा, कमल फूल,
हरदम रहती
भक्तों के साथ।।
इस नवरात्रि के
नौवें दिन में,
जो कन्या भोजन
करवाते हैं।
मनोकामनाएं सब
पूर्ण होती,
तनमन में सुख
शांति पाते हैं।
सिद्धीदात्री मां की
जो लोग,
पूजा- पाठ, उपासना करते।
आठ सिद्धियां
प्राप्त हो जाती,
जीवन सुखी- सुखी
से रहते।।
माता सिद्धिदात्री
की पूजा,
ऋषि मुनि सब
साधक करते।
यश, धन,
बल ,बुद्धि
मिलती,
स्वच्छ तन,
मन बने रहते।।
40
छंद-वाचिक बाला
आधारित गीतिका -
मापनी - 212
212 212 2
आज आया नया वर्ष
मेरा।
नव विभा से भरा
है सबेरा।
चेतना का हुआ
प्रस्फुटन है,
दिव्य आनन्द का
है बसेरा।
छा गया पूर्ण
वैभव प्रकृति में,
नष्ट होगा अशुचि
का अँधेरा।
मंजरी आम्र की
खिलखिलाई,
दूत मधुमास ने
आज टेरा।
रूप रोचक धरा का
रचाकर,
हँस रहा विश्व
का वह चितेरा।
आ करें राष्ट्र
की वन्दना हम,
घोष जय हिन्द का
हो घनेरा।
मेरी मैया
स्वरूप प्यारा।
मैया का दरबार
न्यारा।
दिखती सुंदर
पीली साड़ी
हाथ पकड़ी तलवार
भारी।
मैया की मधुर
मुस्कान है।
माँ के गले
मोतीहार है।
नाक नथ हाथ कंगन
सोहे।
माथे लाल
बिंदिया मोहे।
सभी चलो मैया के
द्वारे।
दरबार के दिखते
नजारे।
सभी भक्तों को
दर्शन दे दो।
खाली झोली सबकी
भर दो।
41---42
41
"गीतिका"
मोहिनी है रूप
न्यारी,माँ भवानी अंबिके।
प्राण से हो
मातु प्यारी,माँ भवानी अंबिके।_१
पल बिताना है
हमें ,तेरी नयन की छाँव में,
द्वार आए हम
दुखारी,माँ भवानी अंबिके।-२
बालिका की छवि
मनोहर,स्नेह धारा बह रही,
हाथ में त्रिशूल
धारी ,माँ भवानी अंबिके।-३
हर निमिष तुम
ध्यान में हो,पूर्ण माँ विश्वास से,
आत्म बल तुम हो
हमारी,माँ भवानी अंबिके।-४
शिष्टता कुछ
सौम्यता माँ,यौग्यता वरदान दो,
है कलुष का बोझ
भारी,माँ भवानीअंबिके।-५
जब लगा जीना
कठिन तेरा सहारा है मिला,
प्राणपन से हूँ
आ'भारी,माँ भवानी अंबिके।-६
प्रार्थना माता तुम्हारी,गीत कविता छंद
मे,
नित नई सरगम
उतारी, माँ भवानी अंबिके।-७
42
अम्बे जी की
आरती
जय अम्बे गौरी,
मैया
जय श्यामा गौरी । तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
मांग सिंदूर
विराजत, टीको मृगमद को । उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रबदन नीको
॥ जय
कनक समान कलेवर,
रक्ताम्बर
राजै । रक्त पुष्प गलमाला, कण्ठन पर साजै ॥ जय
केहरि वाहन राजत,
खड़ग
खप्परधारी । सुर नर मुनिजन सेवक, तिनके दुखहारी ॥ जय
कानन कुण्डल
शोभित, नासाग्रे मोती । कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति
॥ जय
शुम्भ निशुम्भ
विडारे, महिषासुर घाती । धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
जय
चण्ड मुण्ड
संघारे, शोणित बीज हरे । मधुकैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
जय
ब्रहमाणी
रुद्राणी तुम कमला रानी । आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ जय
चौसठ योगिनी
गावत, नृत्य करत भैरुं । बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु ॥
जय
तुम हो जग की
माता, तुम ही हो भर्ता । भक्त,न् की दुःख हरता, सुख-सम्पत्ति
करता ॥ जय
भुजा चार अति
शोभित, खड़ग खप्परधारी । मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
जय
कंचन थाल विराजत,
अगर
कपूर बाती । श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति ॥ जय
श्री अम्बे जी
की आरती, जो कोई नर गावै । कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति
पावै ॥ जय
सर्व मंगल मांगल्ये
शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्येत्र्यंबके
गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥
नारायणी ! तुम
सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो ! कल्याण दायिनी शिव हो
सब पुरुषार्थों
को सिद्ध करने वाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों
वाली एवं गौरी हो ! तुम्हे नमस्कार है!!
.... ........ इति
प्रार्थना
हो रहि खूब
जयकार-जयकार मातारानी मन्दिर विच,
सूचिया जौता
वाली निहारु रूप बार- बार मन्दिर विच |
दरपर लगी रौनक
बेशुमार मेरावली मै पहुँची मन्दिर विच,
किसे माँ नथ
चढ़ाई, ध्वजा नारियल स्वीकार मन्दिर विच |
शैशव से रूप
निहारु, पोशाक का रंग पुकारू देखू मन्दिर विच,
हाथ जोड़ माँ को
पुकारू एक बार देख मेरी ओर मन्दिर विच |
बर्षो से माँ
तेरी लाडली करती सच्चा प्यार दीदार मन्दिर विच ,
खुशियों से वरदे
भक्ति खुशहाली का वर दे नमन मन्दिर विच |
तिलक लगायु
मन्त्र गायु देखी भक्तो की जयकार मन्दिर विच,
प्रसाद पाया माँ
का हार पाया झुमा मन दर्शन स्वीकार मन्दिर विच |
रेखा मोहन
१३/४/२१
कविता
शुभ हो,सुंदर,सत्य
हो,मंगलमय नववर्ष,
क्लेश कालिमा
मिटे सब,मन में छाए हर्ष।
मन में छाए हर्ष,रहे
हर सू खुशहाली,
हर दिन होय होली,और
हर रात दिवाली।
स्वर्णलता कह आज,सभी
अब दूर अशुभ हो,
चैत्र शुक्ल नव
वर्ष,सबके लिए ही शुभ हो।
######
नववर्ष की ढेरों
मंगलमय शुभकामनाओं सहित
रेखा मोहन .
थी तलाश उस
"अपने" की जो सपनों को पांव दे,
मेरे सपनों के
"पर" बनकर उनको नई उडान दे।
लौटाए जो मुझको
मेरी बीती घडीयां "स्वर्णीम" सी,
इन बुढ़ी आंखों
की तलाश बन सपनो को आकार दे।।
मापनी -2122
2122 2122 212
समांत -आया पदांत - किसलिये
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गीतिका
तेल दीपक से
अकारण ही
गिराया किसलिए।
जल रहे थे दीप जो उनको
बुझाया किसलिए।
स्वार्थ मद में
चूर हम सब जा रहे किस ओर हैं,
प्राण अपने
क्रांति वीरों ने
गंवाया किसलिए।
हर किसी का इस
जगत में अंत होना है सुनिश्चित,
ईश ने
नश्वर जगत आखिर
बनाया किसलिए।
प्रेम का पथ
दिव्य अनुपम त्याग इसके मूल में,
तथ्य से अनजान
था वह पास आया किसलिए।
छोड़ कर
प्रियतम अगर जाना किसी के पास था
प्रेम का यह पाठ
हमको था पढ़ाया किसलिए।
आपसी विद्वेष
से होता किसी
का क्या भला
घोल नफरत का
जहर हमको पिलाया किसलिए।
कर्म से
पहले सभी फल के
लिए उत्सुक यहां,
कृष्ण ने वह
ज्ञान गीता का सिखाया
किसलिए।
छन्द-गीतिका(मापनीयुक्त
मात्रिक, 26 मात्रा)
मापनी- गालगागा
गालगागा गालगागा गालगा
समान्त-आया
पदान्त-किसलिए।
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साधना में लीन
थे सरगम बजाया किसलिए।
जो यहाँ थे
सो रहे उनको जगाया किसलिए।
सत्य के
पथ पर चलें सोचा सभी ने साथ था,
छोड़ अपने सत्य
को मुख है छिपाया किसलिए।
साथ चलकर
भी कभी जो साथ
हैं होते नहीं,
हर कदम
छलते रहे सत को लुटाया किसलिए।
कृष्ण की
ही याद में
खोयी रही है राधिका,
प्रीत के इस
राज को मन में रचाया किसलिए।
नन्द नन्दन
के हृदय में
राधिका बसतीं सदा,
नेह के इस
भाव को मन में सजाया किसलिए।
मैं रहा बस
देखते ही आपकी
उस पीर को ,
आजतक जो था छुपा
उसको दिखाया किसलिए।
भाव थे जो दर्द
के अबतक छुपाया
था सही,
था दफन दिल में
कहीं उसको सुनाया किसलिए।
गीतिका
आधार छंद -
विष्णु पद (चौपाई +10)
समांत -आया
पदांत - किसलिए
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मेरा बाली सी
उमर ब्याह, रचाया किसलिए,
दो बच्चों को इस
फंदे में, फसाया किसलिए।
ये सब पुरानी
कहानी को, भुलाना चाहिये,
मस्त ज़िन्दगी
को कोल्हू सा, बनाया किसलिए।
देश भरा है
कुरीतियों से, मुक्त कराये हम,
इन बुराइयों को
उत्सव सा, मनाया किसलिए।
मात पिता की सेवा
करना, भूल गए हम सब,
बिन मात पिता के
सुंदर घर, सजाया किसलिए।
बुरे साथ का
परिणाम बुरा, भटकेंगे कब तक,
सोचो अपनेपन का रिश्ता, मिटाया किसलिए।
मापनी- गालगागा
गालगागा गालगागा गालगा
प्रदत्त समान्त-
आया।
प्रदत्त पदान्त-
किसलिए।
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** गीतिका **
प्यार जब करना
नहीं मन में बसाया किसलिए।
राह मुश्किल जान
कर भी पग बढ़ाया किसलिए।
व्यर्थ के
आश्वासनों से लाभ कुछ होता नहीं।
साथ जब चलना
नहीं सपना दिखाया किसलिए।
नींद गहरी में
बहुत आनंद से थे सो रहे।
चाहते उठना नहीं
थे फिर जगाया किसलिए।
जब अधर पर
खूबसूरत मुस्कुराहट है नहीं।
प्रेम का वह गीत
सुन्दर गुनगुनाया किसलिए।
भावना मन में
जगाकर प्रार्थना जब की नहीं।
पुष्प से फिर
मातृ मन्दिर को सजाया किसलिए।
दें रही वरदान
सबको शक्ति रूपा मां सदा।
फिर स्वयं तू
पास मां के आ न पाया किसलिए।
आधार छंद -
लावणी (मापनीमुक्त मात्रिक 30 मात्रा)
विधान - 30
मात्रा, 16-14 पर यति चरणांत गा
लावणी = चौपाई +
मानव
समान्त - आया,
पदान्त
- किसलिए
दिनांक - 13,4,2024,
शनिवार
शक्ति स्वरूपा
के चरणों में , मन को बिछाया किसलिए,
नहीं दीन से
प्रेम किया दुख, अपना सुनाया किसलिए ।
व्यक्ति वही
पाता है जो वह, देता है सबको जग में,
सर्व विदित यह
बात मनुज मन, जाने भुलाया किसलिए।
ज्ञान वही
सार्थक कहलाता, कर्मों में जो लक्षित हो,
जीवन को जो सजा
न पाये, धन वह कमाया किसलिए।
मानव जीवन सहज न
मिलता, ईश कृपा की छाया है,
तजकर शुभ कर्मों
की संगत, छल से निभाया किसलिए।
जब अति पावन,
मंगलकारी,
है
संसार हमारा ,
द्वेष, कपट,
द्वारा
फिर इसको, हमने सजाया किसलिए।
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