तेरा ख्याल आ गया , मन क्यों शरमा गया ,
एक अजीव नशा सा मेरी सोच में समा गया ।
तू कोन हैं में क्या जानू नस- नस कंप -कपा गया ,
ज़ज्वा- शयारी हैं यही लुभा गया शब्दों में समा गया।
कुछ पता नही ,कुछ ज़ज्वा नही कोई ख्याल नही,
पर किसी का मौहब्ते- व्यान दिल को रिझा गया।
शेरो-शायरी सव कोरी भावनाओ की खेल हैं ,
पर दर्द और रिश्तो का कुछ हद तक लगता सुमेल हैं ।
रेखा.... १६अप्रिल२०१० समय १२:३०अम म.इ अबक रेखा @ गनेल.com
रविवार, 14 अप्रैल 2024
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very light poem and refresing.....its light and good poem....yoginder
जवाब देंहटाएंgood poems, good thoughts.... relexing....
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