रविवार, 14 अप्रैल 2024
जलहरण घनाक्षरी
मुखड़े पर खिलती रहे, स्नेह भरी मुस्कान।
बेगाना कोई नहीं,
मेघ
को   अपना मान।
सहज भाव से ही
हमें, करने हैं निज कर्म।
सबको कब  मिलती यहीं , छटा लिए सी शान
।
स्वरचित -रेखा
मोहन पंजाब
जलहरण घनाक्षरी
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जीवन है पाठशाला,
पढ़ें
खोल मन ताला,
पग पग ज्ञान प्राप्त,
होंगे
सभी प्रश्न हल।
सीखें न्याय
धर्म नीति, अपनों से करें प्रीति,
घृणा बीज बोना
नहीं, होगा सुखमय कल।
करें गुरु को
प्रणाम, खींच इन्द्रिय लगाम,
मान करें माँ
बाबा का, देगा सदा शुभ फल,
क्षमा माँगे भूल
हो तो, डरें नहीं शूल हो तो,
शीश ईश को
झुकायें,मन भरें भाव जल।।
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वर्षा
अग्निहोत्री
तनी है प्रीत की
छतरी मिलन की संग लिए लाली,
बरसता है अमीय
नभ से हुई है रैन मतवाली।
कपोतों का मधुर
जोड़ा अलग हो भीड़ से जग के,
हुआ गुम एक दूजे
में  निहारे रात का माली।
आधार छंद- चौपाई
छंद
विधान- 16
मात्राभार, चरणांत वाचिक दो गुरु अनिवार्य.
समांत-' अनी
' ,  अपदांत.
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प्रदत्त चित्र
पर आधारित मुक्तक:-
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काली-काली
श्यामल रजनी।
बरस रही  है 
बदली सजनी।
लाल-लाल यह छतरी
सुंदर-
जिएँ
जिंदगी  पगली अपनी।
बरखा   लायी 
है    सौगात।
चलो करें   हम 
गुप चुप बात
मधुरिम मस्त
सुहाना मौसम,
छाते   में     
बीतेगी    रात।।
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गुपचुप, छुपछुपकर
बैठे दो पंछी
नेह-नीर में भीग
रहे दो पंछी
घन बरसे,
मन
हरषे, देख रहे
साथ-साथ बैठे
खुश हैं दो पंछी
सुरक्षक राम
पशु- पक्षी,        नरों के राम
रक्षक हैं ।
प्रकृति की छत्र
छाया प्रभु ,   सनातन लोक नायक
हैं ।
सकल गुण ज्ञान
के दाता,  प्रदाता
कीर्ति  यश के  जो-
भजन उनका करें
हम जो,सकल जग मोक्ष दायक हैं ।
*घनाक्षरीः
अम्बर में शुभ्र
अभ्र-खण्ड का वितान तना,
धानी   परिधान  
धारे  ,  धरणी 
मनोहरा।
जहाँ तक जाती
दृष्टि ,दीखती हरी  समष्टि,
बिछे
हरियाली  के , गलीचे
ज्यों  वसुन्धरा।
मृदुल  हरित 
तृण  , द्वय - तन ,
एक  मन,
देख दम्पती  कपोत , प्यार 
व्योम  घहरा।
रस-बुन्द
वर्षारम्भ,हुआ ज्यों ही अविलम्ब,
तना   छत्र ,  राग - रंगिमा  से  बना
दोहरा।।
दो पंछी मिले
साथ ,करें गुटर गूं प्यारी बात ,
चाहें वर्षा ,बादल
धवल हो,बूंदें पड़ती है रसधार।
संग संग गुपचुप
हम बैठेंगे ,छेड़ेंगे फिर राग मल्हार ,
छतरी लाल ,मिली,
अनजान
, एकजुटसंग हमारे तार
छत की सबको
जरूरत होती जाड़े की बरसात में
पशु पक्षियों को
भी ठंड लगती जाड़े की बरसात में
लोग तो ओढ़ कर
बैठे रहते अपने घरों के भीतर
फिर भी ठंड से
काँपा करते जाड़े की बरसात में
बेबस बेघर पशु
बिचारे जायें छिपे कहाँ
तरुवर छाया
ढूँढ़ा करते जाड़े की बरसात में
बने न नीड़ कि आ
गई वारिश असमय समय से पहले
बैठा छिपा कपोत
का जोड़ा जाड़े की बरसात में
छत हो छाता हो
या घोंसला सबका होना चाहिये
संकट में सहयोग
साथ दे जाड़े की बरसात में.
गगन  में बादलों ने है छतरी छायी
झमाझम कर तभी
वर्षा भी आयी
नन्हें कबूतरों
ने देखो छतरी है तानी
सुरक्षा हित
संघर्ष -शक्ति सबमें पायी
एक कबूतर का
जोड़ा,
भीग रहा है पानी
में।
सावन मदिरा पी
आया,
धरती चूनर धानी
में।।
साजन आओ हम
दोनों,
चाँद सितारों पर
जाएँ।
श्याम घटा तुम
बन जाना,
चपला चमके डर
जाएँ।
स्वप्न प्रभा ने
फिर तोड़ा,
मानक मिलन कहानी
में।
प्यास पिया ये
जन्मों की,
जल'वर्षा'से
बुझ जाए।
धरती पर बनकर
साया,
हम तेरे खातिर
आये।।
प्रीत वसन मैंने
ओढ़ा,
तुम राजा हो
रानी मैं।
सरिता की निर्मल
धारा,
जैसा ये जीवन
सारा।
मन मंदिर मैना
बोले,
उड़ें तोड़ ये भुव
कारा।
सूरज ने मुखड़ा
मोड़ा,
आज
छिपें हम छानी में।
पंछी देखो कह
रहे,  अपनी सारी बात।
बिना बुलाए,आ,गई ,देखो
ये बरसात॥
छाते से ही बच
सके, भीगा नहीं शरीर।
भीगी सी इस रात
में,  सुंदर सी सौगात॥
देखकर  नभ की शरारत,  एक छतरी  तन गई
बात इस मुश्किल
घड़ी में पक्षियों की बन गई
है  जिसे 
विश्वास  दुख में  राम जी हैं साथ में
अंततः दुख
में  दिवाली,  ईद 
उसकी  मन गई
आए दिन बरसात के,गरज
रहे हैं मेघ।
बाग बगीचे खिल
उठे,धरती का ये नेग।।
धरती का ये नेग,मुफ्त
फल फूल मिलेंगे।
खुशबू फूलों संग,बाग
के फूल खिलेंगे।।
अंधड़ अपने साथ,
खूब
ओले भी लाए।
हवा चली है जोर,साथ
बारिश लेआए।।
इक पगला आवारा
बादल।
घूम रहा ले नभ
में छागल।।
आज शरारत उसको
सूझी
टपटप टपटप
बरसाता जल।
गुटर गुटर गूं
करें कबूतर
मस्ती में घूमें
टहल टहल।
छतरी लाल देख
झटपट से
जा बैठे नीचे
अगल बगल।
बारिश से अब बच
जायेंगे
लगा उन्हें ममता
का आंचल।।
छा गए नभ पर
बादल धवल,
हो रही बूंदों
की चहल पहल,
भीगी दूब पर,
छाते
के नीचे,
देखो दो परिंदों
कर रहे चुहल।
प्रिय संग,अन॔ग
रिझाय रह्यो,
नव-यौवन की
मदिरा छलकी!
बरसात सुहानि
लगै मन को,
तहि प्रेम-गली
बहकी-बहकी!
मद मस्त हवा ऋतु
सावन की,
हर कुंज-कली
महकी-महकी!
छतरी लइ बैठि,
करैं
खग दो
बतियाँ-प्रिय से
अपने मनकी!
जाएंगे    बस  
साथ   में, मेरे   अपने  
कर्म।
सुख का दुख का
भोग ही,जीवन के हैं मर्म।
करना  ऐसा 
काम अब,खुले मुक्ति का द्वार -
साधना  के 
निश्चय  का,धारण  ही  
है  धर्म।
बहती शीतल मंद ,
चन्दन  सुगन्ध  
मय ।
करती वायु अनुकूल,सेवा
भी उस समय ।।
गन्धर्व      वंदीजन 
, आदि   उप देवा ।
गाते- बजाते
रहते  , करते उनकी सेवा
।।
तेरे ही लाल को ,
संतुष्ट  वे करते ।
विविध उपहारों
का ,करते सब दान ।।
वंशी  बजाते जब ,मन  मोहक 
तान ।।21।।
गौओं से करते
हैं ,  प्रेम     श्याम सुन्दर ।
गोवर्द्धन
धारी  सखी 
,सबके विपदाहर ।।
शाम हो   रही आली , आते    ही 
होंगे ।
गौएँ     लौटाकर 
वे  , लाते  ही   
होंगे ।।
देर होती आने
में  , पथ  में  हे
सखियाँ ,
शिव जी वो
ब्रह्मा जी  , करें विनती-
गान।।
वंशी  बजाते जब ,मन  मोहक 
तान ।।22।।
***           ***             ***        ***
आते होंगे    श्याम,    वंशी    बजाते ।
ग्वाल-बाल संग
मिल , यशोगान गाते ।।
गोखुर देखो
सखिया, धुलमय वन माला ।
वन में   थके  
माँदे  , आते   नन्दलाला ।।
फिर भी
कैसी  शोभा , देते नैन
प्यारे  ,
सबके  ये   
साँवरे , हैं सुख की खान ।।
वंशी  बजाते जब ,मन  मोहक 
तान ।।23।।
यशोदा की कोख-
जात , सबके सुख- कर्त्ता।
चाँद जैसे  प्रेमी 
जन  - के   हैं 
ताप - हर्त्ता ।।
आशा वो अभिलाषा ,
पूरी
करने आ रहे ।
लला ये
सलौने  नैन ,   रतनारे    आ 
रहे ।।
लहराए
वनमाला  , मुदित उनके मन ,
कानन कुण्डल
स्वर्ण,  शोभा महान् ।।
वंशी  बजाते जब ,मन  मोहक 
तान ।।24।।
***           ***             ***        ***
कोमल कपोलों पर ,
कुण्डल-
छवि सोहे ।
पाण्डुवर्ण वदन
सखी, सबका   मन  मोहे ।।
विदा ग्वाल-
बालों को , विदा किये जा रहे ।
मुदित वक्त्र
व्रजभूषण , इधर चले आ रहे ।।
विरह-ताप असह्य
-से , हरने  को आली ,
प्यारे
श्याम  आ रहे , चाँद  के समान ।।
वंशी  बजाते जब ,मन  मोहक 
तान ।।25।।
*** पूर्ण ***




